Banking Laws: बैंकिंग कानून संशोधन बिल संसद में पेश, बदलाव से ग्राहकों और निवेशकों को मिलेगा लाभ।
वित्त मंत्री Nirmala Sitharaman आज, सोमवार 25 नवंबर से शुरू हो रहे सर्दी सत्र के दौरान बैंकिंग कानून संशोधन बिल को संसद में पेश करेंगी। सरकार की योजना है कि इस बिल को आज ही लोकसभा में पास करा लिया जाए, हालांकि यह पार्लियामेंट की कार्यवाही पर निर्भर करेगा। यह बिल पहले मानसून सत्र में पेश किया गया था और इसका उद्देश्य बैंक ग्राहकों को बेहतर सेवा देना और निवेशकों को अनक्लेम्ड फंड्स तक पहुंच प्रदान करना है।
Banking Laws Amendment Bill के मुख्य बिंदु
1. बैंक खाता नामांकनों की संख्या में वृद्धि
बिल के तहत एक बैंक खाता में अधिकतम चार नामांकित व्यक्तियों को रखा जा सकेगा, जबकि वर्तमान में सिर्फ एक नामांकित व्यक्ति रखा जा सकता है। यह बदलाव उन लोगों के लिए फायदेमंद होगा जिनके पास बैंक खाते और लॉकर होते हैं, क्योंकि यह उनके परिवार या रिश्तेदारों को भी लाभ पहुंचाएगा।
2. अनक्लेम्ड संपत्तियों का ट्रांसफर
यह बिल उन संपत्तियों को निवेशक शिक्षा और सुरक्षा कोष (IEPF) में ट्रांसफर करने की व्यवस्था करेगा, जो लंबे समय से अनक्लेम्ड हैं, जैसे- डिविडेंड्स, शेयर, और बांड के रिफंड या ब्याज। इस कदम से निवेशकों के अधिकारों की बेहतर सुरक्षा होगी और वे IEPF से अपनी ट्रांसफर या रिफंड क्लेम कर सकेंगे।
3. “संज्ञेय हित” की परिभाषा में बदलाव
बिल के तहत “संज्ञेय हित” (substantial interest) की परिभाषा को भी बदलने का प्रस्ताव है। पहले इसे ₹5 लाख माना जाता था, जो 1968 में निर्धारित किया गया था। अब इसे ₹2 करोड़ तक बढ़ाया जाएगा। इसका मतलब है कि अब किसी व्यक्ति के पास बैंक या वित्तीय संस्थान में ₹2 करोड़ तक की हिस्सेदारी हो, तब उसे “संज्ञेय हित” माना जाएगा।
4. बैंक रिपोर्टिंग की समय सीमा में बदलाव
यह बिल बैंकों के लिए रिपोर्टिंग की समय सीमा को भी बदलता है। अब बैंकों को RBI को अपनी रिपोर्ट फोर्टनाइट (15 दिन), महीने या तिमाही के आखिरी दिन तक जमा करनी होगी। इससे रिपोर्टिंग के लिए एक मानकीकृत समय सीमा तय हो जाएगी और सभी बैंकों के बीच समानता आएगी।
5. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को ऑडिटर वेतन पर स्वतंत्रता
बिल के जरिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अपने ऑडिटर्स के वेतन का निर्धारण करने की स्वतंत्रता मिल जाएगी। इससे बैंकों को अच्छे ऑडिटर्स को नियुक्त करने में मदद मिलेगी, जो ऑडिट की गुणवत्ता को बेहतर बनाएगा।
Banking Law: कानूनी बदलाव
यह बिल कई महत्वपूर्ण कानूनों में बदलाव करता है, जिनमें शामिल हैं:
- भारतीय रिजर्व बैंक RBI अधिनियम, 1934
- बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949
- भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955
- बैंकिंग कंपनियों (अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1970 और 1980
इस बिल के जरिए सरकार का उद्देश्य बैंकिंग क्षेत्र में बेहतर शासन और निवेशकों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है। वित्त मंत्री Nirmala Sitharaman ने अपने FY24 बजट भाषण में इस बात को स्पष्ट किया था कि बैंकिंग नियमों में बदलाव से बैंकिंग प्रणाली को और मजबूत किया जाएगा।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) अधिनियम, 1934
भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 भारत के केंद्रीय बैंक, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की स्थापना के लिए एक महत्वपूर्ण कानून है। इसे 1934 में पारित किया गया था और यह RBI के संगठन, कार्य, और उसकी शक्तियों को नियंत्रित करता है। इस अधिनियम के तहत RBI को देश के आर्थिक और वित्तीय मामलों में केंद्रीय भूमिका निभाने का अधिकार दिया गया। इसके प्रमुख कार्यों में मुद्रा आपूर्ति, ब्याज दरें निर्धारित करना, मुद्रा का प्रबंधन और भारतीय बैंकों का पर्यवेक्षण शामिल है। इस अधिनियम के माध्यम से रिजर्व बैंक को केंद्रीय बैंक के रूप में प्रमुख वित्तीय नीतियों को लागू करने का अधिकार मिला।
Banking विनियमन अधिनियम, 1949
बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 भारतीय बैंकों के संचालन और प्रबंधन को नियंत्रित करने वाला एक अहम कानून है। यह अधिनियम भारत में सभी प्रकार के बैंकों, जैसे- वाणिज्यिक बैंकों, सहकारी बैंकों, और विदेशी बैंकों पर लागू होता है। इसका उद्देश्य बैंकों की वित्तीय स्थिति को मजबूत करना, उनके संचालन को पारदर्शी बनाना और उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा करना है। इसके तहत बैंकों की शाखाओं का विस्तार, उनके पूंजी संरचना, ऋण वितरण, और लेखा परीक्षा के नियमों को भी नियंत्रित किया जाता है। बैंकिंग विनियमन अधिनियम की मदद से भारतीय रिजर्व बैंक को बैंकों के संचालन की निगरानी करने और जरूरत पड़ने पर हस्तक्षेप करने का अधिकार मिलता है।
भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955
भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955 भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की स्थापना और इसके संचालन को नियंत्रित करने वाला एक प्रमुख कानून है। इस अधिनियम के तहत भारतीय स्टेट बैंक को एक स्वतंत्र, सरकारी बैंक के रूप में स्थापित किया गया, और इसे भारतीय बैंकिंग प्रणाली में प्रमुख स्थान दिया गया। अधिनियम के अनुसार, SBI के पास भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने, मुद्रा आपूर्ति के मामलों में भागीदार होने और अन्य सरकारी कार्यों में सहयोग करने का अधिकार है। इस अधिनियम का उद्देश्य भारतीय स्टेट बैंक को सरकार के आर्थिक और वित्तीय उद्देश्यों में मदद करने के लिए एक मजबूत और विश्वसनीय बैंक बनाना था।
बैंकिंग कंपनियों (अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1970 और 1980
बैंकिंग कंपनियों (अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1970 और 1980 भारत में निजी बैंकों के राष्ट्रीयकरण के लिए पारित किया गया था। 1970 में, भारतीय सरकार ने इस अधिनियम के माध्यम से 14 बड़े निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था, और बाद में 1980 में और 6 बैंकों का। इसके उद्देश्य थे- बैंकों को सरकार के नियंत्रण में लाना, ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएं पहुंचाना, और आर्थिक विकास के लिए बैंकिंग प्रणाली को अधिक सुलभ बनाना। इस अधिनियम के तहत सरकारी नियंत्रण में आने के बाद इन बैंकों का संचालन अधिक पारदर्शी और सरकारी नीति के अनुरूप किया गया। इस राष्ट्रीयकरण से भारतीय बैंकों की वित्तीय स्थिति मजबूत हुई और उन्होंने बड़े पैमाने पर विकास कार्यों में मदद की।