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COP29: Real Cost of COP29 Climate Fund Exposed

COP29 में जलवायु फंडिंग पर बड़ा सवाल: महंगाई को नज़रअंदाज़ किया गया. बक्कू BAKU में हुए COP29 सम्मेलन में अमीर देशों ने 2035 तक हर साल $300 बिलियन की जलवायु फंडिंग देने का वादा किया। इसे 2009 में तय किए गए $100 बिलियन वार्षिक लक्ष्य से तीन गुना बताया जा रहा है। लेकिन अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इस वादे में महंगाई को नज़रअंदाज़ किया गया है, जिससे असल में यह रकम उतनी नहीं होगी जितनी दिख रही है।

COP29: महंगाई से कैसे कम हो जाएगी रकम?

अगर आज का $300 बिलियन महंगाई को ध्यान में रखकर देखा जाए, तो 2035 तक इसका वास्तविक मूल्य लगभग 20% कम हो जाएगा। यानि जो पैसे गरीब देशों को मिलेंगे, उनकी असली कीमत बहुत कम हो जाएगी। गरीब देश पहले से ही कह रहे हैं कि यह रकम उनकी ज़रूरतों के लिए काफी नहीं है, और अब महंगाई इसे और कम कर देगी।

COP29: Climate Change Conference in BAKU #newsmitr

Climate Fund: पुराने लक्ष्य भी नहीं हुए पूरे

2009 में अमीर देशों ने 2020 तक हर साल $100 बिलियन देने का वादा किया था। लेकिन इस रकम को महंगाई के हिसाब से देखा जाए, तो इसे 2020 में $145 बिलियन होना चाहिए था। फिर भी, इस लक्ष्य को 2022 तक पूरा नहीं किया गया।

Climate Fund: अर्थशास्त्रियों की सिफारिशें नजरअंदाज

प्रमुख अर्थशास्त्रियों का कहना था कि 2030 तक $300 बिलियन और 2035 तक $390 बिलियन सालाना देने का लक्ष्य होना चाहिए। साथ ही, उन्होंने कहा था कि इन आंकड़ों को महंगाई के हिसाब से समय-समय पर अपडेट करना चाहिए।

अगर ऐसा किया जाए, तो 2030 के लिए $300 बिलियन का लक्ष्य बढ़कर $368 बिलियन और 2035 का $390 बिलियन बढ़कर $538 बिलियन हो जाएगा। लेकिन COP29 के समझौते में इन सिफारिशों को शामिल नहीं किया गया।

विशेषज्ञों की आलोचना

शिकागो यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री माइकल ग्रीनस्टोन ने कहा कि $300 बिलियन का वादा एक अधूरी कोशिश जैसा है। उन्होंने इसे “आधा खाली गिलास” कहा।

कोलंबिया सेंटर ऑन सस्टेनेबल इन्वेस्टमेंट की निदेशक लिसा सैक्स ने इसे “गलत तरीके से तैयार किया गया वादा” बताया। उन्होंने कहा कि यह रकम विकासशील देशों की ज़रूरत का केवल 12% है।

COP29: पैसा पहुंचाने का तरीका भी गलत

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर नायला कबीर ने कहा कि इस फंडिंग में महंगाई तो छोड़ी ही गई, साथ ही यह भी नहीं बताया गया कि पैसा आसानी से कैसे पहुंचेगा। उन्होंने कहा कि अब गरीब देशों को निजी कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ेगा, जो केवल उन्हीं देशों में पैसा लगाएंगी, जहां उन्हें मुनाफा दिखेगा।

क्या होगा अब?

COP29 का यह समझौता एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश किया जा रहा है, लेकिन इसकी खामियां गरीब देशों के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं। जब तक महंगाई और फंडिंग के तरीके में सुधार नहीं किया जाता, यह वादा अधूरा ही रहेगा।

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