दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। सोमवार को लगातार दूसरे दिन दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) ‘गंभीर’ श्रेणी में बना रहा। DELHI Pollution AQI का स्तर 381 दर्ज किया गया, जो देश में दूसरा सबसे ऊंचा रिकॉर्ड है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, दिल्ली के 17 निगरानी स्टेशनों ने ‘गंभीर’ AQI स्तर दर्ज किया, जो रविवार के 15 स्टेशनों से अधिक है। कई क्षेत्रों में AQI का स्तर 400 के पार चला गया है, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक माना जाता है।
दिल्ली का 24 घंटे का औसत AQI सोमवार को 381 था, जो रविवार के 382 के औसत से थोड़ा कम था। हालांकि, अशोक विहार, अलीपुर, बवाना, द्वारका, जहांगीरपुरी, मुंडका, मोती बाग, NSIT द्वारका, नजफगढ़, नेहरू नगर, ओखला फेज 2, पटपड़गंज, पंजाबी बाग, सोनिया विहार, आनंद विहार, रोहिणी, वज़ीरपुर और विवेक विहार जैसे क्षेत्रों में AQI का स्तर गंभीर श्रेणी में पाया गया। यह स्थिति शहर के निवासियों के स्वास्थ्य के लिए खतरे की घंटी है, खासकर बच्चों, बुजुर्गों और श्वसन संबंधी समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए।
Delhi Pollution AQI
वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) को 0-50 के स्तर को ‘अच्छा’, 51-100 को ‘संतोषजनक’, 101-200 को ‘मध्यम’, 201-300 को ‘खराब’, 301-400 को ‘अत्यधिक खराब’, और 401-450 को ‘गंभीर’ तथा 450 से अधिक को ‘गंभीर प्लस’ माना जाता है। दिल्ली में दिवाली के बाद प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है, और हवाओं के सहारे मिली थोड़ी राहत भी अब स्थिर हो गई है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस समय दिल्ली में हवा का रुख धीमा हो गया है, जिससे प्रदूषक तत्व वातावरण में अधिक समय तक बने रहते हैं और हवा की गुणवत्ता को गंभीर श्रेणी में धकेल देते हैं।
पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने इस स्थिति की गंभीरता को देखते हुए मंगलवार को एक समीक्षा बैठक बुलाई है। इस बैठक में दिल्ली के शीतकालीन कार्य योजना के अंतर्गत प्रदूषण नियंत्रण के लिए उठाए गए कदमों की समीक्षा की जाएगी। विशेषज्ञों का मानना है कि दिल्ली की हवा में प्रदूषण का स्तर आने वाले दिनों में और भी खराब हो सकता है, क्योंकि मौसमी परिस्थितियां प्रदूषण को कम करने में सहायक नहीं हैं। हवा का रुख धीमा होने और पश्चिमी विक्षोभ की कमी के कारण प्रदूषण के स्तर में वृद्धि की संभावना बनी हुई है।
Delhi AQI
पर्यावरण, ऊर्जा और जल परिषद (CEEW) में प्रोग्राम लीड प्रियंका सिंह के अनुसार, दिल्ली का AQI 1 नवंबर को 339 से बढ़कर 4 नवंबर को 381 हो गया, जिसका कारण धीमी हवा की गति है जो प्रदूषकों के फैलाव को सीमित कर देती है। इसके अलावा, पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में भी इजाफा हुआ है। 1 से 3 नवंबर के बीच इन राज्यों में औसतन 570 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं, जो 30 अक्टूबर को 125 घटनाओं के मुकाबले कहीं अधिक हैं। इन पराली जलाने की घटनाओं का भी दिल्ली के वायु प्रदूषण में बड़ा योगदान है।
Warning
वायु गुणवत्ता प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (AQEWS) के अनुसार, 9 नवंबर तक दिल्ली का AQI 400 से ऊपर रहने की संभावना है। सिंह ने कहा कि पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने को नियंत्रित करने की आवश्यकता है और ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) के तहत निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण और निजी वाहन उपयोग को कम करने के लिए पार्किंग शुल्क में वृद्धि जैसे कदम उठाने की आवश्यकता है। GRAP के तहत, गंभीर प्रदूषण स्तर पर सार्वजनिक निर्माण गतिविधियों को भी सीमित किया जाता है ताकि धूल और अन्य प्रदूषक तत्वों को नियंत्रित किया जा सके।
Weather
वर्तमान मौसम की स्थिति भी प्रदूषण को कम करने में सहायक नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि नवंबर के मध्य तक तापमान में कोई बड़ी गिरावट नहीं आएगी, जिससे सुबह के समय स्मॉग की परत बनी रह सकती है। सोमवार को दिल्ली का अधिकतम तापमान 32.1 डिग्री सेल्सियस था, जो सामान्य से 1.6 डिग्री अधिक है। दिल्ली में नमी का स्तर 60% से 83% के बीच रहा। मौसम विभाग ने मंगलवार को साफ आसमान रहने और अधिकतम व न्यूनतम तापमान क्रमशः 32 डिग्री सेल्सियस और 16 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहने का पूर्वानुमान जताया है।
प्रदूषण के इस स्तर ने न केवल आम लोगों बल्कि सरकार और न्यायालय का भी ध्यान खींचा है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से दिवाली पर पटाखों पर लगे प्रतिबंध को सख्ती से लागू करने की मांग की है। अदालत ने सरकार और पुलिस से पटाखों के निर्माण, बिक्री और पटाखे जलाने पर रोक लगाने के आदेशों की पूर्ण जानकारी मांगी है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि प्रतिबंध का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।
दिल्ली में वायु प्रदूषण: गंभीर स्थिति और समाधान की ओर बढ़ते कदम
दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है और यह केवल पर्यावरणीय संकट नहीं, बल्कि एक स्वास्थ्य आपातकाल का रूप लेता जा रहा है। शहर के वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) का स्तर सोमवार को 381 तक पहुँच गया, जो ‘गंभीर’ श्रेणी में आता है। यही नहीं,
दिल्ली के 17 निगरानी स्टेशनों पर प्रदूषण का स्तर ‘गंभीर’ दर्ज किया गया, जो कि रविवार के 15 स्टेशनों से अधिक है। यह स्थिति नागरिकों की स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरे का संकेत है, विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों और श्वसन संबंधी बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए। प्रदूषण के लगातार बढ़ते स्तर के कारण हवा की गुणवत्ता दिन-ब-दिन खराब हो रही है और इसके समाधान के लिए सरकारी और व्यक्तिगत प्रयासों की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक हो गई है।
वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) की महत्वता
वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) वायु में मौजूद प्रदूषक तत्वों के स्तर को मापने का एक मानक तरीका है। AQI का स्तर बताता है कि वायु गुणवत्ता कितनी सुरक्षित है और यह हमारे स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव डाल सकता है। AQI को 0 से 50 तक ‘अच्छा’, 51 से 100 तक ‘संतोषजनक’, 101 से 200 तक ‘मध्यम’, 201 से 300 तक ‘खराब’, 301 से 400 तक ‘अत्यधिक खराब’, और 401 से 450 तक ‘गंभीर’ माना जाता है। जब AQI का स्तर 450 से ऊपर हो जाता है, तो इसे ‘गंभीर प्लस’ माना जाता है।
दिल्ली में प्रदूषण का स्तर वर्तमान में ‘गंभीर’ श्रेणी में है, जिसका मतलब है कि वायु में प्रदूषक तत्व स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक हानिकारक हो सकते हैं। जब AQI 400 के ऊपर चला जाता है, तो यह वायु में मौजूद तत्वों को लेकर विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देता है, जैसे कि सांस में तकलीफ, आंखों में जलन, गले में खराश, और श्वसन प्रणाली में संक्रमण।
प्रदूषण के कारण: वायु प्रदूषण के स्रोत
दिल्ली में प्रदूषण के बढ़ते स्तर के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं। इनमें प्रमुख कारणों में वाहन प्रदूषण, निर्माण गतिविधियां, पराली जलाने की घटनाएँ, और मौसम की स्थितियाँ शामिल हैं।
1. वाहन प्रदूषण
दिल्ली में हर दिन हजारों वाहन सड़क पर होते हैं, और ये वाहन वायु में खतरनाक गैसों जैसे कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, और पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5 और PM10) का उत्सर्जन करते हैं। वाहन प्रदूषण दिल्ली में वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है। दिल्ली में बढ़ते वाहनों की संख्या के साथ-साथ ट्रैफिक जाम और लगातार बढ़ती यातायात घनत्व भी वायु गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं।
2. पराली जलाना
हर साल अक्टूबर और नवंबर के महीने में पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में बढ़ोतरी होती है। इन राज्यों में किसान अपनी फसलों की कटाई के बाद खेतों में जलावन के रूप में पराली को आग लगाते हैं, जिससे भारी मात्रा में धुआं और प्रदूषक तत्व हवा में मिश्रित हो जाते हैं।
पिछले कुछ वर्षों में पराली जलाने की घटनाएँ दिल्ली के प्रदूषण स्तर को और अधिक बढ़ा रही हैं। 1 से 3 नवंबर, 2024 के बीच पंजाब और हरियाणा में औसतन 570 पराली जलाने की घटनाएँ दर्ज की गईं, जो कि 30 अक्टूबर के मुकाबले तीन गुना अधिक थीं। यह प्रदूषण का मुख्य कारण है और दिल्ली की हवा में प्रदूषक तत्वों को और घना करता है।
3. निर्माण गतिविधियाँ और धूल
निर्माण गतिविधियाँ और धूल: दिल्ली में प्रदूषण के बढ़ते कारण
दिल्ली में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के पीछे एक महत्वपूर्ण और निरंतर योगदान देने वाला कारण निर्माण गतिविधियाँ और उससे जुड़ी धूल है। निर्माण कार्यों के दौरान उठने वाली धूल और अन्य प्रदूषक तत्व न केवल वायु गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं, बल्कि यह मानव स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डालते हैं। निर्माण कार्यों के बढ़ने के साथ ही धूल के कण हवा में फैलने लगते हैं, जो दिल्ली के already खराब वायु गुणवत्ता को और भी अधिक खतरनाक बना देते हैं।
निर्माण कार्यों से उत्पन्न धूल: एक गंभीर प्रदूषण स्रोत
निर्माण कार्यों के दौरान धूल के कणों का वातावरण में मिश्रण एक सामान्य घटना है, लेकिन जब यह कार्य अत्यधिक स्तर पर होने लगते हैं, जैसे कि दिल्ली में बड़े पैमाने पर फ्लाईओवर, मेट्रो परियोजनाएँ, बिल्डिंग निर्माण, और अन्य बुनियादी ढांचे की परियोजनाएँ, तो इससे वायु प्रदूषण बहुत बढ़ जाता है। निर्माण स्थलों पर धूल उत्पन्न करने वाली कई प्रक्रियाएँ होती हैं, जिनमें:
- मिट्टी की खुदाई: जब खुदाई की जाती है, तो मिट्टी और कंक्रीट के छोटे-छोटे कण हवा में उड़ते हैं। इन कणों को PM2.5 और PM10 के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं।
- सड़क निर्माण: सड़कों की मरम्मत और निर्माण के दौरान धूल के कणों का उड़ना सामान्य है। जब वाहन इन कच्ची सड़कों से गुजरते हैं, तो और भी अधिक धूल हवा में फैलती है।
- सीमेंट और अन्य निर्माण सामग्री का उपयोग: निर्माण स्थल पर सीमेंट, रेत, बजरी, और अन्य सामग्री का उपयोग भी धूल का एक बड़ा स्रोत है। जब इन सामग्रियों को उड़ाया जाता है या इनके साथ काम किया जाता है, तो वातावरण में छोटे-छोटे कण मिल जाते हैं जो हवा में फैलने लगते हैं।
- निर्माण सामग्री की परिवहन प्रक्रिया: निर्माण सामग्री के ट्रकों से परिवहन के दौरान भी धूल उड़ती है। जब ट्रक खुले होते हैं और परिवहन के दौरान उन्हें ढका नहीं जाता, तो सामग्री के कण हवा में उड़ जाते हैं और वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं।
प्रदूषण में वृद्धि: दिल्ली के निर्माण स्थलों का योगदान
दिल्ली में बढ़ते निर्माण कार्यों के कारण वायु में धूल की मात्रा लगातार बढ़ रही है। जैसे-जैसे दिल्ली की आबादी बढ़ रही है और शहर का विस्तार हो रहा है, वैसे-वैसे निर्माण कार्य भी बढ़ रहे हैं। दिल्ली सरकार द्वारा फ्लाईओवर, मेट्रो, और बड़े पैमाने पर इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएँ शुरू की गई हैं, जो प्रदूषण को नियंत्रित करने की बजाय बढ़ा रही हैं।
इन परियोजनाओं में दिन-रात काम चलता है, और इनमें से अधिकांश स्थल खुले होते हैं, जिनमें धूल को नियंत्रित करने के लिए उचित उपाय नहीं किए जाते। इसके परिणामस्वरूप वायु में PM2.5 और PM10 जैसे सूक्ष्म कणों की मात्रा बढ़ जाती है, जो श्वसन समस्याओं का कारण बनते हैं।
विशेष रूप से निर्माण कार्यों के दौरान, जो धूल वातावरण में फैलती है, वह स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक खतरनाक हो सकती है। यह धूल केवल श्वसन तंत्र को प्रभावित नहीं करती, बल्कि आंखों में जलन, गले में खराश, और अस्थमा जैसे पुराने श्वसन रोगों वाले व्यक्तियों को भी मुश्किल में डाल सकती है।
धूल नियंत्रण के उपाय
निर्माण स्थलों पर धूल को नियंत्रित करने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं। हालांकि दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण के कुछ प्रयास किए गए हैं, लेकिन इन्हें सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है। कुछ महत्वपूर्ण उपाय निम्नलिखित हैं:
- पानी का छिड़काव: निर्माण स्थलों पर नियमित रूप से पानी का छिड़काव करना चाहिए ताकि धूल नीचे गिर जाए और हवा में न फैले।
- सड़कें और निर्माण स्थल ढकना: निर्माण सामग्री के परिवहन के दौरान ट्रकों और वाहनों को ढककर चलाना चाहिए, ताकि धूल के कण हवा में न उड़ें। निर्माण स्थलों को भी ढकने के उपायों पर ध्यान देना चाहिए।
- धूल अवशोषक सामग्री का उपयोग: कुछ निर्माण स्थलों पर धूल अवशोषक सामग्री का इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे कि गीली घास या अन्य हरा-भरा पौधा, जो धूल को अवशोषित कर सकता है।
- प्रदूषण नियंत्रण उपकरण: आधुनिक तकनीकों का उपयोग करते हुए निर्माण स्थलों पर प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों की स्थापना की जा सकती है, जैसे कि हवा को शुद्ध करने वाले एयर फिल्टर और डस्ट कंट्रोल सिस्टम।
- शिकायतों और नियमों की निगरानी: सरकार को निर्माण स्थलों की नियमित निगरानी करनी चाहिए और प्रदूषण नियंत्रण नियमों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करना चाहिए। इससे निर्माण कंपनियों पर दबाव बनेगा कि वे प्रदूषण से बचने के लिए जिम्मेदार कदम उठाएँ।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
निर्माण कार्यों से उत्पन्न धूल का सबसे बड़ा प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है। खासकर उन लोगों के लिए यह अधिक खतरनाक होता है जो पहले से श्वसन तंत्र से संबंधित समस्याओं का सामना कर रहे हैं, जैसे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस या COPD (Chronic Obstructive Pulmonary Disease)। इसके अलावा, दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण:
- श्वसन समस्याएँ: वायु में घुली धूल सांस के द्वारा शरीर में प्रवेश करती है और श्वसन तंत्र पर नकारात्मक असर डालती है। इससे अस्थमा, खांसी, गले में खराश और अन्य श्वसन संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
- आंखों में जलन: धूल और प्रदूषक तत्व आंखों में जलन, खुजली और सूजन का कारण बन सकते हैं। इस प्रकार की समस्याएं बच्चों और बुजुर्गों में अधिक देखी जाती हैं।
- दिल और फेफड़ों पर असर: धूल के कण रक्त में प्रवेश कर सकते हैं और दिल तथा फेफड़ों की कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
- वृद्ध और बच्चों पर अधिक प्रभाव: प्रदूषण और धूल का बच्चों और बुजुर्गों पर विशेष प्रभाव पड़ता है क्योंकि उनकी इम्यूनिटी कमजोर होती है और श्वसन तंत्र भी उतना मजबूत नहीं होता।
निष्कर्ष
दिल्ली में निर्माण गतिविधियाँ और उससे जुड़ी धूल प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन चुकी हैं। निर्माण स्थलों पर धूल के कणों का वायु में फैलना न केवल वायु गुणवत्ता को खराब करता है, बल्कि यह जनता के स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा पैदा करता है। इस समस्या को हल करने के लिए जरूरी है कि सरकार और निर्माण कंपनियां मिलकर सख्त उपायों को लागू करें।
वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए निर्माण स्थलों पर बेहतर धूल नियंत्रण उपायों को लागू करना और उचित निगरानी रखना आवश्यक है। यदि इन उपायों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाता है, तो दिल्ली में धूल और प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे नागरिकों का जीवन और स्वास्थ्य सुरक्षित रह सके।
4. मौसम की स्थिति
दिल्ली का मौसम भी प्रदूषण को नियंत्रित करने में सहायक नहीं है। इस समय हवाओं की गति धीमी है, जिससे प्रदूषक तत्व वायुमंडल में लंबे समय तक बने रहते हैं। इसके परिणामस्वरूप वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) का स्तर बढ़ जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब हवाएं धीमी होती हैं और पश्चिमी विक्षोभ की कमी होती है, तो प्रदूषण फैलने की संभावना अधिक रहती है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है। जब वायु गुणवत्ता का स्तर ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंचता है, तो यह श्वसन तंत्र, हृदय प्रणाली और आंखों पर असर डालता है।
1. श्वसन समस्याएं
गंभीर प्रदूषण का सबसे बड़ा असर श्वसन तंत्र पर पड़ता है। प्रदूषक तत्व जैसे PM2.5 और PM10 हवा में घुलकर सांस के द्वारा शरीर में प्रवेश करते हैं, जिससे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, और अन्य श्वसन रोगों का खतरा बढ़ जाता है। लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेना फेफड़ों के लिए हानिकारक है और इससे फेफड़े कमजोर हो सकते हैं।
2. दिल की समस्याएं
प्रदूषण का दिल पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जब हवा में प्रदूषक तत्व होते हैं, तो वे रक्त प्रवाह में मिल जाते हैं, जिससे दिल की धड़कन पर असर पड़ता है। इससे हृदय रोगों का खतरा बढ़ सकता है, खासकर उन लोगों में जो पहले से दिल की समस्याओं से जूझ रहे हैं।
3. आंखों की समस्याएं
वायु प्रदूषण से आंखों में जलन, खुजली और सूजन जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। प्रदूषक तत्वों के कारण आंखों की संवेदनशीलता बढ़ जाती है, जिससे आंखों में दर्द और जलन हो सकती है।
4. स्मॉग और दृश्यता
दिल्ली में प्रदूषण के कारण सुबह और शाम के समय स्मॉग (धुंआ) की परत बन जाती है, जो दृश्यता को कम कर देती है। यह स्थिति सड़क दुर्घटनाओं का कारण बन सकती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां सुबह के समय स्मॉग ज्यादा घना होता है।
सरकारी और न्यायिक उपाय
दिल्ली में प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए सरकार और न्यायालय ने कई उपायों की योजना बनाई है।
1. ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP)
दिल्ली सरकार ने ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) तैयार किया है, जो प्रदूषण के गंभीर स्तर पर सख्त कदम उठाने का निर्देश देता है। इसके तहत निर्माण गतिविधियों को नियंत्रित करने, निजी वाहनों के उपयोग को सीमित करने, और निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण जैसे उपायों को लागू किया जाता है।
2. दिवाली पर पटाखों की बिक्री पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से दिवाली के समय पटाखों पर सख्त प्रतिबंध लगाने को कहा है। प्रदूषण को बढ़ाने वाले पटाखों की बिक्री और जलाने पर रोक लगाने के आदेश दिए गए हैं। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस और राज्य सरकार से सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं ताकि प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके।
3. पराली जलाने को नियंत्रित करना
दिल्ली सरकार और पड़ोसी राज्य पंजाब और हरियाणा की सरकारों को पराली जलाने की घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए एकजुट प्रयास करने की आवश्यकता है। पिछले कुछ वर्षों में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी हैं, और इसे रोकने के लिए राज्य सरकारों को कृषि संबंधी उपायों को लागू करना होगा।
4. शीतकालीन कार्य योजना
दिल्ली सरकार ने शीतकालीन कार्य योजना बनाई है, जिसके तहत प्रदूषण नियंत्रण के लिए विभिन्न कदम उठाए गए हैं। इस योजना में वाहन प्रदूषण, निर्माण गतिविधियों और पराली जलाने की घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए विशेष उपाय शामिल हैं।
समाप्ति: दिल्ली के प्रदूषण संकट का समाधान
दिल्ली में प्रदूषण की गंभीर स्थिति को देखते हुए, अब यह आवश्यक हो गया है कि सभी संबंधित विभाग मिलकर इस संकट का समाधान ढूंढे। सरकार के प्रयासों के साथ-साथ नागरिकों को भी इस दिशा में अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। प्रदूषण को कम करने के लिए हमें अपने दैनिक जीवन में बदलाव लाना
Delhi Pollution Update 2024: The air quality index (AQI) in Delhi continues to deteriorate as the city witnesses thousands of vehicles on the roads every day, emitting hazardous gases such as carbon monoxide, nitrogen oxides, and particulate matter (PM2.5). Additionally, the incidents of stubble burning in Punjab and Haryana between November 1 and 3, 2024, have increased by three times compared to October 30, contributing significantly to pollution levels in Delhi. Construction activities also play a crucial role in escalating pollution levels by releasing dust and pollutants into the air, posing a serious threat to both air quality and public health, particularly for individuals with weakened immune systems.